गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

ब्राह्मण कौन?

ब्राह्मण को जानना चाहते है? मैं आपको बताता हूँ कि ब्राह्मण कौन है...?*

ब्राह्मण वह है जो वशिष्ठ के रूप में केवल अपना एक दंड जमीन में गाड़ देता है,जिससे विश्वामित्र के समस्त अस्त्र शस्त्र चूर हो जाते हैं और विश्वामित्र लज्जित होकर कह पड़ते हैं-
धिक बलं क्षत्रिय बलं,ब्रह्म तेजो बलं बलं।
एकेन ब्रह्म दण्डेन,सर्वस्त्राणि हतानि में।
(क्षत्रिय के बल को धिक्कार है।ब्राह्मण का तेज ही असली बल है।ब्राह्मण वशिष्ठ का एक ब्रह्म दंड मेरे समस्त अस्त्र शस्त्र को निर्वीर्य कर दिया)

ब्राह्मण वह है जो परशुराम के रूप में एक बार नहीं,21 बार आततायी राजाओं का संहार करता है।जिसके लिए भगवान राम भी कहते हैं-

विप्र वंश करि यह प्रभुताई।
अभय होहुँ जो तुम्हहिं डेराई।

ब्राह्मण वह है,जो दधीचि के रूप में अपनी हड्डियों से बज्र बनवाकर,वृत्तासुर का अंत कराता है।

ब्राह्मण वह है,जो चाणक्य के रूप में,अपना अपमान होने पर धनानन्द को चुनौती देकर कहता है कि अब यह शिखा तभी बँधेगी जब तुम्हारा  नाश कर दूंगा और ऐसा करके ही शिखा बाँधता है।

ब्राह्मण वह है जो अर्थ शास्त्र की ऐसी पुस्तक देता है,जो आज तक अद्वितीय है।

ब्राह्मण वह है जो पुष्य मित्र शुंग के रूप में मौर्य वंश के अंतिम सम्राट बृहद्रथ को ,उठाता है तलवार और स्वाहा कर देता है।भारत को बौद्ध होने से बचा लेता है।यवन आक्रमण की ऐसी की तैसी कर देता है।

ब्राह्मण वह है जो मण्डन मिश्र के रूप में जन्म लिया और जिसके घर पर तोता भी संस्कृत में दर्शन पर वाद विवाद करते थे।अगर पता नहीं है तो यह श्लोक पढो, जो आदि शंकर के मण्डन मिश्र के घर का पता पूछने पर उनकी दासियों ने कहा था-
स्वतः प्रमाणं परतः प्रमाणं,
कीरांगना यत्र गिरा गिरंति।
द्वारस्थ नीण अंतर संनिरुद्धा,
जानीहि तंमण्डन पंडितौकः।
(जिस घर के दरवाजे पर पिंजरे में बन्द तोता भी वेद के स्वतः प्रमाण या परतः प्रमाण की चर्चा कर रहा हो,उसे ही मण्डन मिश्र का घर समझना।)

ब्राह्मण वह है जो शंकराचार्य के रूप में 32 वर्ष की उम्र तक वह सब कर जाता है,जिसकी कल्पना भी सम्भव नहीं है।अद्वैत वेदान्त,दर्शन का शिरोमणि।

ब्राह्मण वह है जो अस्त व्यस्त अनियंत्रित भाषा को व्याकरण बद्ध कर पाणिनि के रूप में अष्टाध्यायी लिख देता है।

ब्राह्मण वह है,जो पतंजलि के रूप में अश्वमेध यज्ञ कराता है और महाभाष्य लिख देता है।

ब्राह्मण वह है जो तुलसी के रूप में ऐसा महाकाव्य श्री राम चरित मानस, लिख देता है,जो जन जन की गीता बन जाती है।

और बताऊँ ब्राह्मण कौन है?

ब्राह्मण है वह नारायण,जिसने महाराणा प्रताप व उनके भाई शक्ति सिंह के मध्य युद्ध को रोकने के लिए,उनके समक्ष चाकू से अपनी ही हत्या कर दिया था।पता नहीं है तो श्याम नारायन पांडेय का महाकाव्य हल्दी घाटी,प्रथम सर्ग की ये पंक्तियां पढ़ो-

उठा लिया विकराल छुरा
सीने में मारा ब्राह्मण ने।
उन दोनों के बीच बहा दी
शोणित–धारा ब्राह्मण ने।।

वन का तन रँग दिया रूधिर से
दिखा दिया¸ है त्याग यही।
निज स्वामी के प्राणों की
रक्षा का है अनुराग यही॥

ब्राह्मण था वह ब्राह्मण था¸
हित राजवंश का सदा किया।
निज स्वामी का नमक हृदय का
रक्त बहाकर अदा किया॥

ब्राह्मण वह है जो श्याम नारायण पांडेय के रूप में जन्म लेकर,हल्दी घाटी,जौहर,जैसे हिंदी के महाकाव्य लिख डाले, जो अपनी दार्शनिकता व वीर रस के कारण अमर है।थोड़ा परिश्रम करो और जौहर के मंगलाचरण की प्रारंभिक पंक्तियाँ ही पढ़ लो,बुद्धि ठीक हो जाएगी-

गगन के उस पार क्या,
पाताल के इस पार क्या है?
क्या क्षितिज के पार? जग
जिस पर थमा आधार क्या है?

दीप तारों के जलाकर
कौन नित करता दिवाली?
चाँद - सूरज घूम किसकी
आरती करते निराली?

ब्राह्मण वह है जो सूर्य कांत त्रिपाठी के रूप में अवतरित हुआ और अपने साहित्य के निरालेपन,जीवन के अक्खड़पन से निराला बन गया।अमर है निराला की राम की शक्ति पूजा-

बोले विश्वस्त कण्ठ से जाम्बवान-"रघुवर,
विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण,
हे पुरुषसिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण,
आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर,
तुम वरो विजय संयत प्राणों से प्राणों पर।
रावण अशुद्ध होकर भी यदि कर सकता त्रस्त
तो निश्चय तुम हो सिद्ध करोगे उसे ध्वस्त,
शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन।

धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध,
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका,
वह एक और मन रहा राम का जो न थका,
जो नहीं जानता दैन्य, नहीं जानता विनय,
कर गया भेद वह मायावरण प्राप्त कर जय,

ब्राह्मण को समझना चाहते हो तो अटल विहारी वाजपेयी के धाराप्रवाह भाषण को सुनिए।भारत रग रग में भर जाएगा।यह भी न हो सके तो सिर्फ ये पंक्तियां पढ़ लीजिये जनाब-

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।

आग्नेय परीक्षा की
इस घड़ी में—
आइए, अर्जुन की तरह
उद्घोष करें :
‘‘न दैन्यं न पलायनम्।’

ब्राह्मण ने तो भगवान को भी अश्रु बहाने को बाध्य कर दिया था।याद है गरीब ब्राह्मण सुदामा कृष्ण की मित्रता।
महाकवि नरोत्तम दास के शब्दों में-

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुम, आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सौं पग धोये।

ब्राह्मण प्रज्ञा चक्षु होता है,प्रज्ञाचक्षु।बिना आंख के असम्भव को संभव बना देता है।मूर्खों को यह समझ मे नहीं आएगा।जाकर वर्तमान में स्वामी राम भद्राचार्य अर्थात गिरिधर मिश्र जी को चित्र कूट में देखिए।02 माह के थे,जब आंख की रोशनी चली गयी।अब तक 100 से ज्यादा ग्रंथों के लेखक,22 भाषाओं के ज्ञाता,संस्कृत में दो महाकाव्य-श्री भार्गव राघवीयम और गीत रामायनम।
हिंदी में दो महाकाव्य-अष्टावक्र और अरुंधती।

प्रकृति के सुकुमार कवि,श्री सुमित्रा नन्दन पन्त जी को क्यों विस्मृत करें।कुछ तो है ब्राह्मण रक्त में जरूर।देखिए पन्त जी की उदार विश्व कल्याण की वाणी-
तप रे, मधुर मन!

विश्व-वेदना में तप प्रतिपल,
जग-जीवन की ज्वाला में गल,
बन अकलुष, उज्जवल औ\' कोमल
तप रे, विधुर-विधुर मन!

अपने सजल-स्वर्ण से पावन
रच जीवन की पूर्ति पूर्णतम
स्थापित कर जग अपनापन,
ढल रे, ढल आतुर मन!

तेरी मधुर मुक्ति ही बन्धन,
गंध-हीन तू गंध-युक्त बन,
निज अरूप में भर स्वरूप, मन
मूर्तिमान बन निर्धन!
गल रे, गल निष्ठुर मन।

ब्राह्मण कभी भी निम्न चिंतन करता ही नहीं है।वह हमेशा सत्य,न्याय,धर्म,सदाचार,देश प्रेम की बात करता है।राम नरेश त्रिपाठी जी की इस कविता से यह बात प्रमाणित हो जाती है-

हे प्रभु आनंद-दाता
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए,
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें,
निंदा किसी की हम किसी से भूल कर भी न करें,
ईर्ष्या कभी भी हम किसी से भूल कर भी न करें,
सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें,
दिव्या जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें,
जाये हमारी आयु हे प्रभु लोक के उपकार में,
हाथ डालें हम कभी न भूल कर अपकार में,
कीजिए हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा,
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा,
प्रेम से हम गुरु जनों की नित्य ही सेवा करें,
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें,
योग विद्या ब्रह्म विद्या हो अधिक प्यारी हमें,
ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के सर्व हितकारी बनें,
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये।

ब्राह्मण की तो इतनी लंबी श्रृंखला है कि ग्रन्थ लिखा जा सकता है।आशा,उत्साह,त्याग,गति,यही सब तो ब्राह्मण की पूंजी है!!

*जय परशुराम*

शनिवार, 11 नवंबर 2017

[05/11, 4:17 PM] rakesh hdwaar 2nd: *#संस्कार*
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बेटा तुम्हारा इन्टरव्यू लैटर आया है। मां ने लिफाफा हाथ में देते हुए कहा।

यह मेरा सातवां इन्टरव्यू था। मैं जल्दी से तैयार होकर दिए गए नियत समय 9:00 बजे पहुंच गया। एक घर में ही बनाए गए ऑफिस का गेट खुला ही पड़ा था मैंने बन्द किया भीतर गया।

सामने बने कमरे में जाने से पहले ही मुझे माँ की कही बात याद आ गई बेटा भीतर आने से पहले पांव झाड़ लिया करो।फुट मैट थोड़ा आगे खिसका हुआ था मैंने सही जगह पर रखा पांव पोंछे और भीतर गया।

एक रिसेप्शनिस्ट बैठी हुई थी अपना इंटरव्यू लेटर उसे दिखाया तो उसने सामने सोफे पर बैठकर इंतजार करने के लिए कहा। मैं सोफे पर बैठ गया, उसके तीनों कुशन अस्त व्यस्त पड़े थे आदत के अनुसार उन्हें ठीक किया, कमरे को सुंदर दिखाने के लिए खिड़की में कुछ गमलों में छोटे छोटे पौधे लगे हुए थे उन्हें देखने लगा एक गमला कुछ टेढ़ा रखा था, जो गिर भी सकता था माँ की व्यवस्थित रहने की आदत मुझे यहां भी आ याद आ गई,  धीरे से उठा उस गमले को ठीक किया।

तभी रिसेप्शनिस्ट ने सीढ़ियों से ऊपर जाने का इशारा किया और कहा तीन नंबर कमरे में आपका इंटरव्यू है।

मैं सीढ़ियां चढ़ने लगा देखा दिन में भी दोनों लाइट जल रही है ऊपर चढ़कर मैंने दोनों लाइट को बंद कर दिया तीन नंबर कमरे में गया ।

वहां दो लोग बैठे थे उन्होंने मुझे सामने कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और पूछा तो आप कब ज्वाइन करेंगे मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जी मैं कुछ समझा नहीं इंटरव्यू तो आप ने लिया ही नहीं।

इसमें समझने की क्या बात है हम पूछ रहे हैं कि आप कब ज्वाइन करेंगे ? वह तो आप जब कहेंगे मैं ज्वाइन कर लूंगा लेकिन आपने मेरा इंटरव्यू कब लिया वे दोनों सज्जन हंसने लगे।

उन्होंने बताया जब से तुम इस भवन में आए हो तब से तुम्हारा इंटरव्यू चल रहा है, यदि तुम दरवाजा बंद नहीं करते तो तुम्हारे 20 नंबर कम हो जाते हैं यदि तुम फुटमेट ठीक नहीं रखते और बिना पांव पौंछे आ जाते तो फिर 20 नंबर कम हो जाते, इसी तरह जब तुमने सोफे पर बैठकर उस पर रखे कुशन को व्यवस्थित किया उसके भी 20 नम्बर थे और गमले को जो तुमने ठीक किया वह भी तुम्हारे इंटरव्यू का हिस्सा था अंतिम प्रश्न के रूप में सीढ़ियों की दोनों लाइट जलाकर छोड़ी गई थी और तुमने बंद कर दी तब निश्चय हो गया कि तुम हर काम को व्यवस्थित तरीके से करते हो और इस जॉब के लिए सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार हो, बाहर रिसेप्शनिस्ट से अपना नियुक्ति पत्र ले लो और कल से काम पर लग जाओ।

मुझे रह रह कर माँऔर बाबूजी की यह छोटी-छोटी सीखें जो उस समय बहुत बुरी लगती थी याद आ रही थी।

मैं जल्दी से घर गया मां के और बाऊजी के पांव छुए और अपने इस अनूठे इंटरव्यू का पूरा विवरण सुनाया.

*इसीलिए कहते हैं कि व्यक्ति की प्रथम पाठशाला घर और प्रथम गुरु माता पिता ही है।*
[09/11, 6:35 PM] rakesh hdwaar 2nd: एक *चूहा* एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।

एक दिन *चूहे* ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं। चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।

उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक *चूहेदानी* थी।

ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर *कबूतर* को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।

कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या? मुझे कौनसा उस में फँसना है?

निराश चूहा ये बात *मुर्गे* को बताने गया।

मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा… जा भाई.. ये मेरी समस्या नहीं है।

हताश चूहे ने बाड़े में जा कर *बकरे* को ये बात बताई… और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।

उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई,  जिस में एक ज़हरीला *साँप* फँस गया था।

अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।

तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया। हकीम ने उसे *कबूतर* का सूप पिलाने की सलाह दी।

कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।

खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी *मुर्गे* को काटा गया।

कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो *बकरे* को काटा गया।

*चूहा* अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ……….।

_*अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।*_

*_समाज का एक अंग, एक तबका, एक नागरिक खतरे में है तो पूरा देश खतरे में है।_*

*_अपने-अपने दायरे से बाहर निकलिये। स्वयं तक सीमित मत रहिये। सामाजिक बनिये.."और *हंसी बनाने से पहले सोचिए जरुर*
💐💐सोच धरम की 🍁
[09/11, 7:18 PM] rakesh hdwaar 2nd: छोटी लड़की ने गुल्लक से सब सिक्के निकाले और उनको बटोर कर जेब में रख लिया ...!

निकल पड़ी घर से – पास ही केमिस्ट की दुकान थी ....
उसके जीने धीरे धीरे चढ़ गयी....!!

वो काउंटर के सामने खड़े होकर बोल रही थी पर छोटी सी लड़की किसी को नज़र नहीं आ रही थी ...

ना ही उसकी आवाज़ पर कोई गौर कर रहा था, सब व्यस्त थे...!!

दुकान मालिक का कोई दोस्त बाहर देश से आया था
वो भी उससे बात करने में व्यस्त था...!!

तभी उसने जेब से एक सिक्का निकाल कर काउंटर पर फेका सिक्के की आवाज़ से सबका ध्यान उसकी ओर गया....

उसकी तरकीब काम आ गयी....!

दुकानदार उसकी ओर आया...
और उससे प्यार से पूछा क्या चाहिए बेटा... ?

उसने जेब से सब सिक्के निकाल कर अपनी छोटी सी हथेली पर रखे... और बोली मुझे *“चमत्कार”* चाहिए ....!!!

दुकानदार समझ नहीं पाया उसने फिर से पूछा, *वो फिर से बोली मुझे “चमत्कार” चाहिए...!!*

दुकानदार हैरान होकर बोला – बेटा यहाँ चमत्कार नहीं मिलता....!

वो फिर बोली अगर दवाई मिलती है तो चमत्कार भी आपके यहाँ ही मिलेगा..!

दुकानदार बोला – बेटा आप से यह किसने कहा... ?

अब उसने विस्तार से बताना शुरु किया –
अपनी तोतली जबान से – मेरे भैया के सर में टुमर (ट्यूमर) हो गया है, पापा ने मम्मी को बताया है की डॉक्टर 4 लाख रुपये बता रहे थे – अगर समय पर इलाज़ न हुआ तो कोई चमत्कार ही इसे बचा सकता है ....

और कोई संभावना नहीं है...
वो रोते हुए माँ से कह रहे थे...
अपने पास कुछ बेचने को भी नहीं है...
न कोई जमीन जायदाद है न ही गहने – सब इलाज़ में पहले ही खर्च हो गए है....!
दवा के पैसे बड़ी मुश्किल से जुटा पा रहा हूँ...!!

वो मालिक का दोस्त उसके पास आकर बैठ गया और प्यार से बोला अच्छा.... कितने पैसे लाई हो तुम चमत्कार खरीदने को...?

उसने अपनी मुट्टी से सब रुपये उसके हाथो में रख दिए....!!
उसने वो रुपये गिने 21 रुपये 50 पैसे थे...!!!

*वो व्यक्ति हँसा और लड़की से बोला तुमने चमत्कार खरीद लिया,*
चलो मुझे अपने भाई के पास ले चलो...!!!

वो व्यक्ति जो उस केमिस्ट का दोस्त था अपनी छुट्टी बिताने भारत आया था... वह *न्यूयार्क का एक प्रसिद्द न्यूरो सर्जन था*...उसने उस बच्चे का इलाज 21 रुपये 50 पैसे में किया और वो बच्चा सही हो गया...!!!

प्रभु ने लडकी को चमत्कार बेच दिया – वो बच्ची बड़ी श्रद्धा से उसको खरीदने चली थी वो उसको मिल भी गयी....!

*नीयत साफ़ और मक़सद सही हो तो, किसी न किसी रूप में कृष्ण आपकी मदद करते ही है.....!!*

_यही आस्था का चमत्कार है...!!!_

*अगर इस कहानी से आपकी पलकें नम हुई है तो किसी एक जरूरतमंद की मदद जरूर करें।*

🙏🏻💐 *जय श्री कृष्ण* 💐🙏🏻

गुरुवार, 15 मार्च 2012

                                                          मगही भाषा आउ साहित्य      

 अभी तक जेतना खोज-बिन होयल हे ओकरा से पता चल हे कि मगही भासा और साहित्य के ई देस मे ढेर दिन से
 बेवहार चलल अवित हे। बहुत पहले हियाँ संस्कृत के बोल बाला हल आऊ ढेर दिन तक रहल।बाकी मध्य काल मे  स्वाभाविक रूप मे अनेक बोली विकसित होवे लगल ओकर नाम प्राकृत  पड़ल। मगह जनपद  मे  जाऊन   प्राकृत  भासा के विकास भेल ओकर नाम मागधी प्राकृत पड़ल।सबसे पहले वररुचि (१) महाराष्ट्री(२) पैशाची (३)मागधी (४) शौरसनी। ई तरह से प्राकृत के चार भाग भेल। बाद मे हेमचंद्र आरसी या अर्ध मागधी आऊ सूलिका पशाचिक के भी प्राकृत मे जोडल गेल। मध्य काल मे संस्कृत के नाटक मे मघाधि के ब्यवहार ढेखल जाहे।बाकी खयाल रखे के चाहि कि संस्कृत नाटक मे जाऊन मघाधि के व्यवहार कायेल  गेल हे उ साहित्य-रूढ़ हे जेकर उ बखत सार्वदेसिक  प्रयोग मिल हे।बाकी स्वछंद रूप से मगध जन पद  मे जाऊन भासा प्राचीन कल मे बढल आऊ फरल-फुलल उ मागधी apbhrans के रूप धारण कयलक उ हमार मघही भासा हे।

पृष्ठ-२

अति प्राचीन मगही भासा के विकास मे सिद्ध लोगन के सबसे जादे योगदान हे । जब बौद्धधर्म मे विकृति आयेल त ओकरा मे से एगो मंत्रायन नाम के साखा बनल । ई साखा मंत्र से सिद्धि प्राप्त करे के उपाय बताव हल साहित्य के
अखड़ विद्वान पंडित राहुल सांकृत्यायन जी एकरा मे चौरासी गो सिद्ध के नाम गिनाव हलन,आऊ साथे एहू बताव
हलन की इनकर साहित्य आऊ प्रचार के भासा मगही हल । एकरा पर डा॰ राम कुमार वर्मा जी के मतानुसार .......
    ईसा के आठवी शताब्दी मे बौद्ध धर्मवालम्बी पाल शासकों ने बंगाल और बिहार पर अपना अधिपत्य स्थापित
कर लिया था।  उन्हों ने बौद्धों के प्रति अपनी संरक्षण शील प्रवृति का परिचय भी दिया । यहाँ तक कि बौद्ध विश्वविद्यालय विक्रम शीला की स्थापना भी उन्हीं के द्वारा हुई । ऐसी स्थिति मे सुदूर दक्षिण मे चलने वाले वज्रयान को भी यहाँ शरण मिली । राज्य संरक्षण प्राप्त कर वज्रयान अपने तंत्र मंत्रवाद के साथ अपने सिद्धांतों का
भी  प्रचार प्रसार पूरी शक्ति के साथ करने लगा वाममार्ग और शक्ति तंत्र का रूप उग्र हो उठा । इसी समय राजा
धर्मपाल के शासन काल (ई॰ 769 -809)मे सिद्ध कवि सरहपा का आविर्भाव हुआ बिहार की जन भाषा मे काव्य रचना करने के कारण सरहपा आदि सिद्ध कवियों की भाषा मगही का पूर्व रूप होना स्वभाविक है।

पृष्ठ (3)

मंगलवार, 3 जनवरी 2012

शेरघाटी के अमर जवान

शेरघाटी जिसका नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है, आइए हम इसका अवलोकन करें
यहाँ की धरती सिर्फ वीर ही पैदा नहीं की है वरन यहाँ का इतिहास देश पर मर मिटने वाले शहीदों और स्वतन्त्रता सेनानियों की कहांनियों से अटा पड़ा है। हम एक एक कर उन सब के वारे मे जानेंगे ।

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

पुराने गानों का रीमिक्स या भोड़ेपन की गायकी

वालीबुड में इनदिनों रिमिक्स का प्रचलन या कहे की भौंडेपन से पुराने गीतों की रीमिक्स का प्रचलन बढ़ा ही नहीं बल्कि बाज़ारों में भी ऐसे विडियो की भरमार है . यहाँ तो ये कहावत बिलकुल मौजूं है की "हरिभजन में आलसी भोजन में होशियार " या यूँ कह ले की "लड़े सिपाही नाम हवलदार के" पुराने संगीतकार हफ़्तों की कड़ी मेहनत से जहाँ गीतों में जान फूकते थे आज रीमिक्स वाले लोग उनके ही जूठन पर पलकर तीस मार खान बने बैठे है .मेहनत से कोसो दूर रहने वाले ये कलाकार कर्पूरी डिविजन के दम पर कहाँ से कर्णप्रिय मधुर संगीत का नव सृजन कर पाएंगे ??? संगीत की एक आत्मा होती है जो सच्चा संगीत साधक ही उसके गहराई को समझ सकता है संगीत का नाद ब्रह्म होता है जो हमारे ज्ञानेन्द्रिया के कण कण में कम्पन करके एक अलोकिक लोक का स्वांग रच देते है पर आजकल के ये रिमिक्सियन फंडे देने वाले लोग न तो संगीत के गहराई के उस स्तर को समझते है और न ही समझने का उपक्रम करते है...आज संगीत के नाम पर जो भी कुछ परोसा जा रहा है उससे भारतीय संगीत का कुछ भी भला होने वाला नहीं. भोजपुरी संगीत के नाम पर आज जो कुछ भी दि-अर्थी बोल बाले गाने बन रहे है वो सचमुच संगीत की अर्थी ही निकाल रहे है.... जहाँ संगीत के नाम पर अश्लील शव्द और अधो वस्त्रो में अपने तन को दिखाती अभिनेत्रियाँ अपने लोल लुभावन भाव भंगिमों से विष कन्या बन हमारे पुरातन संस्कारो को डस रही है .....